2 February, 2025

अटल जी की वो ख़ास बातें जो आप नहीं जानते होंगे

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का आज जन्मदिन है। अटल बिहारी वाजपेयी एक सफल प्रधानमंत्री, एक सफल नेता प्रतिपक्ष होने के साथ-साथ बहुत अच्छे कवि भी थे। अटल जी एक ऐसे राजनेता थे जो विपरीत परिस्थितियों में भी किसी से भी संवाद और समन्वय स्थापित कर सकते थे। यह उनके व्यक्तित्व की विराटता का सबूत था। उनकी इसी खूबी के नाते उनको किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता। वह पूरे देश के थे और पूरा देश उनका! बावजूद इसके, कुछ जगहों से उनका बहुत ख़ास लगाव भी था। मसलन, आगरा की बाह तहसील स्थित बटेश्वर उनकी मातृभूमि थी। पिता की नौकरी के दौरान बचपन ग्वालियर में गुजरा। कानपुर से उन्होंने पढ़ाई की, तो लखनऊ को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिला गोरखपुर से उनका रिश्ता तो बेहद खास था। वजह थी गोरखपुर में बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की ससुराल होना। इस शादी में वह 1940 में सहबाला बनकर आए थे। मां की मौत के बाद वह ग्वालियर की जगह गोरखपुर आना ही पसंद करते और लंबे समय तक रुकते थे।

जब अटल जी सहबाला बनकर आये थे गोरखपुर

दरअसल कुंवारे अटलजी के बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की ससुराल गोरखपुर के आर्यनगर या अलीनगर स्थित माली टोला में रहने वाले स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के घर है। 84 साल पहले वह बड़े भाई की शादी में सहबाला बनकर गोरखपुर आए थे। पहनावा था हाफ पैंट और शर्ट ! राजनीति में अति सक्रिय होने तक उनका लगातार गोरखपुर आना-जाना होता था। खासकर मां कृष्णा देवी की मृत्यु के बाद गर्मियों की छुट्टियों में वह गोरखपुर आना ही पसंद करते थे। लिहाजा दीक्षित परिवार के पास आज भी उनकी यादों का पुलिंदा है। अब न अटलजी रहे, न यादों के किस्से सुनाने वाले अधिकांश लोग। कुछ कही सुनी बातों के मुताबिक, उम्र में अटल जी से कुछ ही छोटे स्वर्गीय कैलाश नारायण दीक्षित (इंजीनियर) और सूर्यनारायण दीक्षित (पूर्व विभागाध्यक्ष वनस्पति शास्त्र विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ अटल जी ने अपने नौजवानी के तमाम दिनों को गुजारा था।

बेसन का पनौछा और रसाद अटल जी को थी बेहद पसंद

जब अटलजी गोरखपुर आते तब उनके एक कांग्रेसी दोस्त रमेशचंद्र दीक्षित का भी खूब आना होता था। दोनों में खूब बहस होती थी। यहां दीक्षित बंधुओं की मां श्रीमती फूलमती उनका खासा ख्याल रखती थी। वे उनसे ही कुछ अधिक अटैच हो गये। उनके आने-जाने और कुछ उनकी भाभी रामेश्वरी के बताने से दीक्षित परिवार अटलजी के शौक से वाकिफ हो चुका था। खाने में उन्हें बेसन की दो चीजें पनौछा, रसाद बेहद पसंद थीं। इसके अलावा खीर भी पसंद थी।

अटलजी को शाम को दूध पीने की आदत थी

ऐसा ही एक वाकया दिल्ली का भी है। अटलजी को शाम को दूध पीने की आदत थी। न मिलने पर नाराज हो सकते थे। कम मिलने पर परिहास भी कर सकते थे। वाकया उन दिनों का है जब वे दिल्ली में वीर अर्जुन से जुड़े थे। सूर्य नारायण दीक्षित वहीं पी. एच. डी. करने गये थे। 5-6 महीने वे अटलजी के साथ ही रहे। उनके मुताबिक एक बार वह लोग कहीं किसी परिचित से मिलने गए थे। शाम को जिस गिलास में दूध पीने को मिला, वह गिलास कुछ छोटी थी। सबेरे नाश्ते के समय पानी का जो गिलास आया, उसका आकार बड़ा था। अटलजी ने गिलास को घुमा फिरा कर गौर से देखा, फिर अपने ही अंदाज में कहा, रात कहां थी महारानी। वहां मौजूद सारे लोग आशय समझ ठठाकर हंस पड़े।

राजनीति में परिवारवाद के थे कड़े विरोधी, भाई को मिल रहा टिकट कटवा दिया

अटलजी राजनीति में भाई-भतीजावाद के कड़े विरोधी थे। बडे भाई का तो मिल रहा टिकट भी कटवा दिया। एक बार अलीनगर स्थित मथुरा सदन आये थे। बातचीत के क्रम में संजीव ने पार्टी से अपने जुड़ाव के बारे में बताया तो उन्होंने संजीव की ओर मुखातिब होकर कहा, “भाजपा की अप्रेंटिस तो बहुत कठिन है।”

रिश्तों को देते थे भरपूर सम्मान

रिश्तों का भरपूर ख्याल रखने के साथ उनका ध्यान इस बात पर रहता था कि कोई इसका लाभ लेकर उनकी छवि पर बट्टा ना लगा दे। इसलिए पार्टी के कार्यक्रमों में वे रिश्तेदारों को कोई तवज्जो नहीं देते थे। पर पारिवारिक समारोहों में वे बिल्कुल बेतकल्लुफ रहते थे। कोशिश यही रहती, कि ऐसे मौकों पर पूरी तरह संजीदा रहने के लिए वे अकेले ही जायें और मौके का पूरा आनंद लें। वह संबंधों का कितना ख्याल रखते थे, इसके एक-दो वाकये ही काफी हैं। अटलजी को गोरखपुर में एक चुनावी सभा संबोधित करनी थी। उनसे मिलने के लिए दीक्षित बंधु सर्किट हाउस गए। आने में देरी की वजह से दोनों लौटने लगे। अभी वे सर्किट हाउस से कुछ दूर पहुंचे थे कि गाड़ियों का काफिला आता हुआ दिखा। दोनों चुपचाप काफिले के गुजरने तक के लिए सड़क के किनारे खड़े हो गये। दो गाड़ियां गुजर गयीं। तीसरी गाड़ी थोड़ी रुकी। एक व्यक्ति उसमें से उचका और हाथ हिलाया और गाड़ी चल दी। बूढ़ी आंखें इसे समझ नहीं पाईं। बाद में पार्टी के नेताओं ने बताया कि हाथ हिलाने वाले अटलजी ही थे। बाद में भाजपा के तब के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सूर्य नारायण से भेंट के दौरान इसकी तस्दीक करते हुए कहा, उस गाड़ी में मैं भी था।

बाकी शहरों से रिश्ता

कानपुर

ग्वालियर से पढ़ने के बाद अटलजी कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज में कानून की पढ़ाई करने आये। यहां शादीशुदा बड़े भाई प्रेम सह परिवार रहते थे। वह घुमनी मोहाल मोहल्ले में एक स्कूल में पढ़ाते थे। ट्यूशन के साथ वह भी एलएलबी कर रहे थे।

पिता और पुत्र एक साथ कर रहे थे लॉ

रिटायर होने के बाद उनके पिता भी यहां कानून की पढ़ाई करने आये। उस समय बड़ा मजेदार वाकया हुआ। जब वे दाखिले के लिए पहुंचे तो प्राचार्य ने पूछा कि किस लड़के का दाखिला चाहिए तो उन्होंने कहा, लड़के तो पढ़ रहे हैं, खुद ही प्रवेश लेना है।

फादर इज जूनियर टू सन

बाद में जब अटलजी के दोस्तों में इस बात की चर्चा हुई तो उन लोगों ने होली के दिन अखबारों में ‘फादर इज जूनियर टू सन’ के शीर्षक से इस प्रकरण को निकलवा दिया।

कानपुर से लखनऊ

बाद के दिनों में वे कानपुर से लखनऊ आ गये। यहाँ वे पांचजन्य पत्रिका से जुड़ गये। उस समय कैलाश दीक्षित भी सुंदरबाग में रहकर अप्रेंटिस कर रहे थे। अटलजी वहां एपी सेन रोड स्थित संघ के कार्यालय में ही रहते थे। शाम को वे अक्सर सुंदरबाग आते थे। अगर खाना बनाने की तैयारी हो रही होती थी तो पूछते, घी है न। घूमने के लिए अक्सर अमीनाबाद जाते थे। मन में आया तो पीपल के पेड़ के पास कोने की दुकान पर ठंडई भी पीते थे। शौक तो उन्हें पिक्चरों का भी था, पर पूरी देखेंगे या उठकर चल देंगे अथवा हाल ही में उंघने लगेंगे, यह पसंद पर निर्भर था। लखनऊ में उन दिनों वह अपने फुफेरे भाई जगदीश चंद दीक्षित के सरोजनी देवी लेन लाल कुंआ पर भी अक्सर आते थे।

लखनऊ से दिल्ली

बाद के दिनों में अटलजी दिल्ली गये और वीर अर्जुन से जुड़ गये। उन दिनों नया बाजार में वीर अर्जुन का कार्यालय था। वहीं पर अटलजी भी रहते थे। कुछ दिनों बाद सूर्य नारायण जी वहां दिल्ली विश्वविद्यालय से पी.एचडी. करने गये। वहां शुरू में एक गढ़वाली नौकर खाना बनाता था। महीने भर बाद वो भाग गया। खाना बनाने की दिक्कत आयी। दीक्षितजी सवेरे ही विश्वविद्यालय चले जाते थे। अटलजी कुछ खा लेते थे। शाम को खाना बनता था। दूध से कोई समझौता नहीं। चांदनी चौक की पराठा वाली गली से पराठे, चटनी और जलेबी खाना भी उनको पसंद था।

पढ़ना उनकी आदत थी

अटलजी पढ़ने के बहुत शौकीन थे। सांसद होने के बाद जिस मकान में रहते थे वहां दो कमरों में अखबार की रद्दी भरी रहती थी। एक में दो पलंग व कुर्सियां, अटैच बाथरूम और अखबार रहता था। तमाम अखबार वह बाथरूम में ही वे पढ़ लिया करते थे। शायद इसी शौक के कारण उन्होंने अपने जीते जी ग्वालियर स्थित अपने पैतृक मकान को लाइब्रेरी में तब्दील करवा दिया था। भावुकता, रचनाधर्मिता और अध्यवसाय उनको विरासत में मिली थी। पिता कृष्ण वाजपेयी सिंधिया राज्य में इंस्पेक्टर आफ स्कूल थे। बाबा पंडित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के प्रकांड विद्वान और कवि थे। इनके पिता पंडित काशी प्रसाद भी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनका अधिकांश समय काशी में अध्ययन करते गुजरा था।

कभी-कभार भांग भी छान लेते थे

ठंडई पीना उनका खानदानी शौक था। बाबा श्यामलाल वाजपेयी भी दैनिक क्रिया और पूजा पाठ के बाद एक गोला गटक लेते थे। बाकी का गोला बनाकर अपनी बकुची (एक तरह की डालिया) में रख लेते थे। अटलजी के पिताजी कृष्ण वाजपेयी भी सबेरे नंगे बदन बैठ कर सिलबट्टे पर भांग पीसते थे। इस दौरान वह बार-बार अपने बांह की मांसपेशियां भी देखते रहते। अटलजी भी नौजवानी के दिनों में कभी-कभार ठंडई छान लेते थे। इस शौक की एक और भी वजह थी। उनकी मातृभूमि आगरा के बाह तहसील के बटेश्वर में यमुना नदी के किनारे थी। वहां भगवान शिव के कई मंदिर हैं। मान्यता है कि शिवजी को भांग प्रिय है, सो उन्हें भी इस प्रसाद का शौक लग गया। एक राजनेता, एक कवि, एक आत्मीय परिजन, हर मोर्चे पर अपनी सफल पारी खेलने और देश के इतिहास में अमर स्थान पाने वाले श्री अटल बिहारी जी बाजपेयी को उनकी जयंती पर शत शत नमन।

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